22 विभाग एक रुपया भी नहीं खर्च कर पाए, धरे रह गए 9458 करोड़

सीएजी की रिपोर्ट में खुलासा, नगर विकास, उद्योग व परिवहन समेत कई विभाग शामिल

अमर उजाला ब्यूरो, लखनऊ। वर्ष 22-23 की सीएजी रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 22 विभागों ने विभिन्न मदों में मिले 9458 करोड़ रुपये खर्च ही नहीं किए। आवास विभाग ने वाराणसी, गोरखपुर आदि के लिए मेट्रो के मद में मिले 100 करोड़ खर्च नहीं किए। नई उद्योग नीति के तहत मिले 300 करोड़ रुपये भी बिना खर्च रह गए।

सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक उद्योग विभाग को गंगा एक्सप्रेसवे परियोजना के लिए मिले 250 करोड़, पंचायती राज को मिले 146 करोड़ और नगर विकास विभाग को स्वच्छ भारत मिशन के लिए 815 करोड़ रुपये मिले थे, लेकिन इसमें से एक रुपया भी नहीं खर्च किया गया। न्याय विभाग को मिले कोर्ट कैंपस निर्माण के मद में लिए 400 करोड़ व इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के लिए 150 करोड़ आवंटित किए गए थे, जो बिना खर्च के रह गए।

वाराणसी में कोर्ट के नए भवन के लिए 200 करोड़ रुपये का प्रावधान था, जो पूरा नहीं किया गया। विधि विवि प्रयागराज के लिए 100 करोड़ रुपये दिए गए थे, जो रखे रह गए। परिवहन विभाग को ई वाहनों की मदद के लिए दिए गए 100 करोड़ रुपये भी खजाने से बाहर नहीं निकले। अल्पसंख्यक कल्याण बोर्ड को केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए मिले 608 करोड़ रुपये और महिला एवं बाल कल्याण विभाग भी मुख्यमंत्री सक्षम सुपोषण योजना के तहत मिले 100 करोड़ का इस्तेमाल नहीं कर सका। वित्त विभाग को गारंटी रिडंपशन फंड के तहत मिले 1200 करोड़ का भी इस्तेमाल नहीं किया गया। . एनपीएस के दायरे में आने वाले सरकारी कर्मचारियों के 31 मार्च 2019 तक के बचे नियोक्ता अंशदान के एकमुश्त भुगतान के लिए 3000 करोड़ का प्रावधान किया गया था, जो पूरा रखा रह गया। अंशदान और देरी से जमा किए गए नियोक्ता अंशदान पर ब्याज के लिए 980 करोड़ का भी में कोर्ट के नए भवन के इस्तेमाल नहीं किया गया।

वन संरक्षण कोष की फाइल खंगाल रहा वन विभाग

लखनऊ। प्रदेश में वन संरक्षण कोष का प्रस्ताव शासन को भेजकर अफसर संबंधित फाइल को भूल गए। कैग की रिपोर्ट में खुलासा होने के बाद शुक्रवार को फाइल ढूंढना शुरू किया गया। फिलहाल कोई यह बता पाने की स्थिति । में नहीं है कि फाइल किसके स्तर से और कहां रुकी है।

विधानसभा में रखी गई कैग की रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय संसाधनों को बढ़ाने के लिए उत्तर प्रदेश राज्य वन नीति, 2017 में कहा गया है कि बाहरी स्रोतों से प्राप्त होने वाले धन के लिए वन संरक्षण कोष बनाया जाएगा। इसमें उद्योगपतियों, निजी संस्थानों और व्यक्तियों से मिलने वाला धन जमा किया जाएगा। इस राशि का उपयोग वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण के लिए किया जाएगा ।

कैग की रिपोर्ट में खुलासा होने के बाद जागे अफसर

पॉल्युटर्स पे यानी प्रदूषण फैलाने वालों को इसकी कीमत अदा करनी होगी। इस सिद्धांत पर प्रदूषणकारी एजेंसियों, खननकर्ताओं, वाहनों की बिक्री आदि पर उपकर (सेस) लगाकर इस कोष में राशि जमा की जाएगी। कैग की रिपोर्ट में कहा गया कि वन संरक्षक कोष अगर बनाया गया होता तो इससे वनों की सुरक्षा और विकास में सुगमता होगी। इस बारे में संपर्क किए जाने पर वन विभागाध्यक्ष एसके शर्मा ने बताया कि एक- दो दिन बाद ही कुछ बता पाने की स्थिति में होंगे कि संबंधित फाइल का स्टेटस क्या है। ब्यूरो |

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