4 साल बाद फिर निजीकरण का दांव

लखनऊ। सितंबर 2020 में पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का खाका खींचा गया था कर्मचारी संगठनों ने इसका पुरजोर विरोध किया। जिसके बाद मंत्री सुरेश खन्ना और श्रीकांत शर्मा की अगुवाई में गठित मंत्रिमंडलीय उप समिति ने लिखित समझौता कर निजीकरण के प्रस्ताव को टाल दिया था। 2009 से अब तक यूपी में बिजली कंपनियों व कुछ खास क्षेत्रों के निजीकरण के पांच प्रयास हो चुके हैं। यूपी में बिजली क्षेत्र के निजीकरण का पहला उदाहरण नोएडा है। राज्य विद्युत परिषद के जमाने से यानी 1993 में ही नोएडा की बिजली व्यवस्था एनपीसीएल कंपनी को दे दी गई। यह कंपनी अब भी इस क्षेत्र में कार्यरत है। इसके बाद राज्य विद्युत परिषद का विघटन 14 जनवरी 2000 में किया गया।

इस विघटन के एक साल बाद यानी कानपुर की बिजली व्यवस्था के निजीकरण की पहली कोशिश 2001 में हुई 2009 तक कई बार कोशिश हुई लेकिन विरोध के चलते सरकार टेंडर नहीं कर पाई थी । 2009 में कानपुर और आगरा की बिजली व्यवस्था टोरंट पावर को देने का एग्रीमेंट सरकार ने कर लिया था। कानपुर में इसका जबर्दस्त विरोध हुआ, जिसकी वजह से टोरंट पावर से समझौता हो जाने के बाद भी राज्य सरकार को यह एग्रीमेंट 2013 में तोड़ना पड़ा। हालांकि इस बीच एक अप्रैल 2010 को आगरा की बिजली टोरंट पावर को दे दी गई।

घाटे का कारण बताए प्रबंधनः संघ

लखनऊ। राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ ने बिजली कंपनियों के निजीकरण के फैसले का पुरजोर विरोध किया है। संघ ने कहा है कि बढ़ते घाटे के लिए सीधे तौर पर ऊर्जा प्रबंधन जिम्मेदार है। ओडिशा में पूरी • तरह विफल माडल की तर्ज पर यूपी में बिजली वितरण का निजीकरण स्वीकार्य नहीं है। प्रबंधन बिजली कंपनियों के घाटे का बिंदुवार कारण बताए । अभियंता संघ के महासचिव जितेंद्र सिंह गुर्जर ने कहा है कि पावर कारपोरेशन द्वारा बिजली वितरण क्षेत्रों। का ओडिशा मॉडल की तरह पीपीपी मोड पर निजीकरण किया जाना है। यह न ही उपभोक्ताओं के हित में है और न ही कर्मचारियों के हित में निजीकरण स्वीकार्य नहीं है। घाटे और कर्ज के नाम पर पॉवर कारपोरेशन को ऋण पाश (डेब्ट ट्रैप) में बताने से पहले जरूरी है कि प्रबंधन बिन्दुवार यह बताए कि किन-किन कारणों से घाटा हो रहा है और प्रबंधन ने घाटा कम करने के क्या कदम उठाए हैं। ओडिशा का माडल 17 साल में ही फेल: 1998 में ओडिशा में सभी वितरण कंपनियों का पीपीपी मॉडल पर निजीकरण किया था।

सरकार के साथ हुए समझौते का उल्लंघन

अप्रैल 2018 में तत्कालीन ऊर्जा मंत्री श्रीकान्त शर्मा से वार्ता के बाद हुए लिखित समझौते और अक्तूबर 2020 में वित्त मंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता में मंत्रिमंडलीय उप समिति के साथ हुए लिखित समझौते में स्पष्ट कहा गया है कि ऊर्जा क्षेत्र में कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा। उक्त समझौतों का उल्लंघन कर निजीकरण की कवायद की जा रही है तो यह सरकार के साथ हुए समझौते का उल्लंघन होगा।

  • 2001 से ही निजीकरण की हो रहीं कोशिशें.
  • 2020 के बाद फिर से निजीकरण की कार्ययोजना.
  • 1993 से नोएडा की बिजली व्यवस्था एनपीसीएल के पास.
  • 2010 से आगरा की व्यवस्था टोरंट पावर के पास है.

2013 में हुआ था बिजली के निजीकरण का फैसला

अप्रैल 2013 में पांच शहरों जिसमें मुरादाबाद गाजियाबाद, वाराणसी, मेरठ, कानपुर शामिल हैं, इनके निजीकरण का फैसला होने के बाद टेंडर कर दिया गया था। विरोध होने पर टेंडर होने के बाद इस फैसले को टाल दिया गया।

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