लखनऊ। वर्ष 2000 में जब राज्य विद्युत परिषद का विघटन हुआ था, तब घाटा महज 77 करोड़ था। बिजली कंपनियां बनाई गई और प्रबंधन ब्यूरोक्रेट्स के हाथ में जाने के बाद से महज 24 साल में ही यह घाटा 1.10 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया है। राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने आरोप लगाया है कि देश के बड़े निजी घरानों के हाथ में प्रदेश की बिजली व्यवस्था देने के लिए अब घाटे का अलाप शुरू किया गया है। 77 करोड़ का घाटा कैसे 1.10 लाख पहुंचा इसके लिए केंद्र व प्रदेश सरकार की नीतियां भी जिम्मेदार हैं।
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