राज्य ब्यूरो, जागरण, लखनऊ | लगातार पांचवें वर्ष भी राज्य में बिजली की दरें यथावत रहने के आसार हैं। महंगाई की मार झेल रहे प्रदेशवासियों को और महंगी बिजली होने से राहत मिल सकती है। उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर 33,122 करोड़ रुपये सरप्लस निकलने के आधार पर माना जा रहा है कि विद्युत नियामक आयोग कानूनन बिजली की दरें बढ़ाने के संबंध में निर्णय नहीं करेगा। सरप्लस को देखते हुए उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने तो आयोग से बिजली की दरें घटाने की मांग की है। हालांकि, वित्तीय संकट से जूझ रहे पावर कारपोरेशन ने 11,203 करोड़ रुपये के राजस्व गैप की भरपाई के लिए आयोग से बिजली की दरें बढ़ाने की मांग की है।
उपभोक्ताओं का 33,122 करोड़ रुपये है बिजली कंपनियों पर, कानूनन नहीं बढ़ाई जा सकती हैं दरें
वर्ष 2024-25 के लिए बिजली की दरों के प्रस्ताव को अंतिम रूप देने के संबंध में विद्युत नियामक आयोग ने सोमवार को राज्य सलाहकार समिति की बैठक बुलाई थी। आयोग के अध्यक्ष अरविन्द कुमार की अध्यक्षता में लगभग दो घंटे चली बैठक में बिजली की दरों के संबंध में बिजली कंपनियों से लेकर उपभोक्ता प्रतिनिधियों ने दो घंटे तक चर्चा की। वैसे तो पावर कारपोरेशन प्रबंधन द्वारा आयोग में दाखिल किए गए एक लाख करोड़ रुपये से अधिक के वार्षिक राजस्व (एआरआर) के साथ बिजली की दरों के संबंध में कोई प्रस्ताव नहीं दिया गया था लेकिन मौजूदा दरों से 11,203 करोड़ रुपये के राजस्व गैप को देखते हुए बैठक में कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक पंकज कुमार ने कहा कि गैप की प्रतिपूर्ति के लिए आयोग खुद दरों को बढ़ा दे। उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने राजस्व गैप के आंकड़े खारिज करते हुए कहा कि जब उपभोक्ताओं का ही बिजली कंपनियों पर 33,122 करोड़ रुपये सरप्लस निकल रहा है। तब फिर कानूनन बिजली की दरें नहीं बढ़ाई जा सकती हैं। पावर कारपोरेशन की ओर से सरप्लस पर आयोग से पुनर्विचार की बात करने पर परिषद अध्यक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि आयोग टाइपिंग की गड़बड़ी को छोड़ अपने किसी भी आदेश का रिव्यू नहीं कर सकता ।
वर्मा ने कहा कि वर्ष 2017-18 में उपभोक्ताओं का 13,337 करोड़ रुपये सरप्लस था। बाद के वर्षों में भी सरप्लस निकलने से अब यह 33,122 करोड़ रुपये हो गया है। टैरिफ पालिसी के तहत तो तीन वर्ष में ही सरप्लस का समायोजन हो जाना चाहिए था।
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