बिजली पंचायत में राज्य विद्युत परिषद लिमिटेड के पुनर्गठन की उठाई मांग
अमर उजाला ब्यूरो, लखनऊ। पूर्वांचल और दक्षिणांचल निगमों को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत संचालित करने के विरोध में रविवार को लखनऊ में बिजली पंचायत हुई। देशभर से जुटे ऊर्जा संगठनों के पदाधिकारियों ने तय किया कि वे किसी भी कीमत पर निजीकरण बर्दाश्त नहीं करेंगे।निजीकरण टेंडर जारी होते ही करो मरो की तर्ज पर अनिश्चितकालीन आंदोलन शुरू किया जाएगा। इसकी जिम्मेदारी सरकार और ऊर्जा प्रबंधन की होगी। पंचायत में मांग की गई कि ओबरा डी और अनपरा ई परियोजना का कार्य राज्य विद्युत उत्पादन निगम को सौंपा जाए। 25 जनवरी 2000 के समझौते के तहत सभी विद्युत वितरण निगमों को मिलाकर उप्र राज्य विद्युत परिषद लिमिटेड का पुनर्गठन किया जाए। पदाधिकारियों ने सीएम योगी आदित्यनाथ के प्रति विश्वास जताते हुए उनसे हस्तक्षेप की मांग की। वहीं, ऊर्जा मंत्री और प्रबंधन पर हमला बोलते हुए निजी घरानों से सांठगांठ का आरोप लगाया और नारेबाजी की। राणा प्रताप मार्ग स्थित फील्ड हॉस्टल में दोपहर करीब एक बजे शुरू हुई पंचायत में वक्ताओं ने कहा कि निजीकरण कार्मिकों व उपभोक्ताओं के लिए हितकारी नहीं है। जब 7 साल में बिजलीकर्मियों ने 24 प्रतिशत लाइन हानियां कम की हैं तो अगले एक वर्ष में वे इसे 12 प्रतिशत तक भी ले जाने में समर्थ हैं।
बंटेंगे तो बिकेंगे, एक हैं तो सेफ हैं का नारा
विभिन्न स्थानों से आए अभियंता व अन्य कार्मिक हाथ में नारे लिखी तख्तियां लिए हुए थे। वे बंटेंगे तो बिकेंगे और एक हैं तो सेफ हैं का नारा लगा रहे थे। इस दौरान अभियंताओं ने ऊर्जा मंत्री के विरोध में नारेबाजी की।
सभी 42 जिलों में निकलेगा रथ, होगी पंचायत: विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति और उपभोक्ता परिषद के एक मंच पर आने से निजीकरण के विरोध की लड़ाई रोचक हो गई है। पंचायत में तय हुआ कि निजीकरण के दायरे में आने वाले सभी 42 जिलों में बिजली रथ यात्रा निकाल कर पंचायत की जाएगी। श्रम संगठनों के पदाधिकारियों ने कहा कि निजीकरण का प्रयोग ग्रेटर नोएडा, आगरा और देश के अन्य प्रान्तों में फेल हो चुका है। पावर कॉर्पोरेशन प्रबंधन ने निजीकरण का मसौदा कर्मचारियों बगैर विश्वास में लिए तैयार किया है। इस संबंध में पूर्व हुए समझौतों का कॉर्पोरेशन ने उल्लंघन किया है।
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