यह बहुत ही गंभीर प्रकरण है कि तमाम खूबियां गिनाते हुए जिन स्मार्ट मीटरों को खरीदा गया, केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय की जांच में उपभोक्ताओं के यहां वे मैनुअल ही काम करते पाए गए। इससे साफ है कि स्मार्ट मीटरों की खरीद में गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा गया, न उपभोक्ता को उसका वास्तविक लाभ मिला और न ही पावर कारपोरेशन अपनी व्यवस्था में सुधार कर पाया। स्मार्ट मीटर लगाने के पीछे जो उद्देश्य थे, वे पूरे न हुए। स्मार्ट मीटरों की गुणवत्ता को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे हैं लेकिन अधिकारियों ने कभी भी इसे गंभीरता से नहीं लिया। केंद्रीय जांच टीम ने यह भी कहा है कि भारत सरकार की गाइडलाइन के अनुसार उपभोक्ताओं के परिसर पर लगाए गए चेक मीटर और मेन मीटर का मिलान नहीं किया जा रहा है। यह किसी बड़ी गड़बड़ी की ओर इशारा है इसलिए पूरे मामले की गंभीरता से जांच की जानी चाहिए। यह भी हास्यास्पद है कि प्रदेश में 4जी नेटवर्क के दौर में पावर कारपोरेशन ने टूजी और थ्रीजी वाले स्मार्ट मीटर खरीदे जो आगे चलकर अनुपयोगी साबित हो सकते हैं।
पावर कारपोरेशन को अपनी योजनाएं भविष्य की तकनीकी को ध्यान में रखते हुए तैयार करनी चाहिए ताकि उपभोक्ताओं को समस्याओं का सामना न करना पड़े।
पावर कारपोरेशन को अपनी योजनाएं भविष्य की तकनीकी को ध्यान में रखते हुए तैयार करनी चाहिए ताकि उपभोक्ताओं को समस्याओं का सामना न करना पड़े। अभी प्रदेश में 12 लाख उपभोक्ताओं के यहां स्मार्ट मीटर लगे हैं और आगे चलकर इन्हें सभी 3.35 करोड़ उपभोक्ताओं के यहां लगाया जाना है। प्रदेश अब 5जी नेटवर्क की ओर बढ़ रहा है तो भविष्य में 5जी स्मार्ट मीटर की ही खरीद भी की जाए और यदि पहले से कोई टेंडर दिये जा चुके हैं तो उसकी समीक्षा की जाए। पावर कारपोरेशन के लिए उपभोक्ताओं का हित सर्वोपरि होना चाहिए। केंद्रीय जांच टीम ने जो गड़बड़ियां पाई हैं, उन्हें तीन साल पहले ही राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने भी उठाया था लेकिन तब ध्यान नहीं दिया गया। परिषद ने स्मार्ट मीटरों में स्पार्क टेस्ट न लगाने को भी एक बड़ी गड़बड़ी बताया था। इन सारी गड़बड़ियों के पीछे किसके हित थे, यह तभी सामने आ सकता है जब सीबीआइ जैसी एजेंसी जांच करे ।
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